(१)
टूटे ख़्वाबों को यूँ तामीर किया है उसने
चूम कर दर्द, मुझे मीर किया है उसने
तोड़ कर आज ज़माने की सभी दीवारें
ख़ुद को राँझे के लिए हीर किया है उसने
मैं भी इतराता हुआ घूमूँ, इसी चाहत में
अपने दिल को मेरी जागीर किया है उसने
अब्र-सी अपनी दुआओं की नज़र बरसा कर
मेरा मरुथल-सा जिगर नीर किया है उसने
मेरे गर्दिश में सितारे हैं, पता चलते ही
मुझ-से दर-दर को बग़लगीर किया है उसने
(२)
सफ़र में तू नहीं होता तो मैं ऐसा कहाँ होता
बला का इस तरह रौशन मेरा चेहरा कहाँ होता
फ़क़त रुस्वाइयाँ, रुस्वाइयाँ, रुस्वाइयाँ होतीं
न होता तू तो फिर शोहरत का ये ऑरा कहाँ होता
ख़यालों को मेरे पाकीज़गी देता न गर तू यूँ
मेरा दिल फिर मचलता-सा कोई बच्चा कहाँ होता
कोई भी माँग नाजायज़ नहीं की ज़ीस्त ने मुझसे
पसीने से धुला वर्ना मेरा पैसा कहाँ होता
अँधेरे ही अँधेरे ही अँधेरे चार-सू होते
मेरा साया, मेरा चमका, मेरा रुतबा कहाँ होता
(३)
जादू सा बने छाए हो ज़ह्नों पे हमारे
और कहते हो मत जाइए वादों पे हमारे
पहलू में रहो या न रहो फ़र्क़ हमें क्या
क्या कम है ये रहते हो सर आँखों पे हमारे
चंदन की तरह तुम हो तो पानी की तरह हम
फिर क्यों ये सवालात हैं रिश्तों पे हमारे
सावन की झड़ी और ये शब हिज्र की लंबी
अब कुछ तो तरस खाइए ज़ख़्मों पे हमारे
हम ख़ुश हैं, बहुत ख़ुश हैं, बहुत खुश हैं, बहुत ख़ुश
मत जाइए, मत जाइए अश्कों पे हमारे
(४)
कुछ दवाओं के सहारे जी रहा हूँ
कुछ दुआओं के सहारे जी रहा हूँ
इश्क़, उल्फ़त, प्यार, चाहत, लव, मुहब्बत
इन गुनाहों के सहारे जी रहा हूँ
ख़त पुराने कुछ रखे हैं अब भी उनके
उनकी आहों के सहारे जी रहा हूँ
खो गई चहचह वो गोरैया की लेकिन
उन सदाओं के सहारे जी रहा हूँ
क्या पता किसकी निगहबानी में हूँ मैं
किन निगाहों के सहारे जी रहा हूँ
(५)
क़िस्मत से मिल रही है ये फ़ुर्सत नयी नयी
ऐसे में हो रही है मुहब्बत नयी नयी
कुछ रोज़ में ही सूरत-ए-आलम गयी बदल
मौला ने बख़्श दी है जो सोहबत नयी नयी
अच्छे भले थे, खोए थे अपनी ही धुन में हम
कमबख़्त पड़ गयी है ये क्या लत नयी नयी
पहले ही कम कहाँ थीं कहो आफ़तें हमें
उस पर भी हमने ओढ़ ली आफ़त नयी नयी
अब वो पुराना अपना कलेवर कहाँ रहा
आने लगी है हम पे भी रंगत नयी नयी