■ सैनिक का खत
सीमा की निगरानी में हूँ
मैं थका नहीं तुम सुनो अभी
मैं राग अलापा करता हूँ
ना खुद से भागा फिरता हूँ ।
बैठा रहता हूँ राहों में
धूपों में साया बुनता हूँ।
मैं मग्न नहीं हूँ खुद में
पर पैग़ाम पुराना रखता हूँ।
धरती के सीने में पड़कर
चंदा को ताका करता हूँ।
वो शीतलता मनभावक है
जिससे मैं भागा फिरता हूँ।
मैं मौन नहीं हूँ हुआ अभी
बदलाव का साया बुनता हूँ।
मैं बॅंधा नहीं धाराओं में
मझधार को साधा करता हूँ।
सूरज की किरणें है मुझमें
पतवार पुरानी रखता हूँ।
मैं फॅंसा नहीं परिभाषा में
फरियाद दुबारा करता हूँ।
डट बने रहो उन राहों में
निर्भय होकर निश्छल होकर।
कर जोड़ उन्हें तुम नमन करो
भारत माँ के सब लाल सुनो।।
भारत माँ को तुम नमन करो।
तुम नमन करो।
■ करुणा का भाव भरा जिसमें
करुणा का भाव भरा जिसमें
वह राग किसी ने सुना नहीं।
मैं मौन हुआ मुस्काता सा
पर सीमाओं में बॅंधा नहीं।
हँसता रोता गाया फिरता
पर किलकारी बन बुना नहीं।
चंदा की चॉंदनी को देखो
वह मौन की कथा सुनाती है।
ये पल कैसा अलसाया सा
हर क्षण एक कथा सुनाता है।
कुछ पल यूँ आँखें खोल मूॅंद
लंबा इतिहास सुनाते है।
करुणा का भाव भरा जिसमें
वह राग किसी ने सुना नहीं।
■ माँ जैसी दिखने वाली
पहले उस घटना ने
समाज से अलग किया।
फिर उस समाज ने
परिवार ने अलग किया।
फिर उसके
खुद के परिवार ने।
मिलकर उसे हॉं
उससे उसे ही अलग कर दिया।
कितनी निर्ममता से हत्या कर दी
हॉं तुम सबने मिलकर।
जिसने जब तुम्हारे पास
कोई खिलौना नहीं था।
उसकी किलकारी देख
मुस्कराकर उसकी माँ से।
कहा करते थे इसकी आँखें
बिल्कुल तुम पर गई है।
और आज उन्हीं आँखों से
जब दुनिया देखने का समय आया तो।
तोड़कर फेंक दी अपनी ही वो गुड़िया
जिसकी वज़ह खुद तुम सब थे।
वो तो अनमोल थी पर कीमत तो तुम सबने
हां तुम सबने लगाई उसकी।
वो तो अनमोल थी उसे क्या पता था
कि दुनिया मे ‘रेप’ शब्द
उस माँ जैसी दिखने वाली परी के लिए
इतना ख़ौफनाक हो जाएगा।
■ मेरी कुछ किताबें
तुमको मैंने जितना मोड़ दिया था
किसी रोज पलट कर खोलने के बाद
तुम्हारे उन्ही किस्सों को
फिर से दोहराने के लिए
पर देखों न उन मोड़े गए
कुछ किस्सों को हम तो भूल गए
तुमनें कैसे याद रखा सब कुछ अपने में
जो हम नहीं कह पाए
लिखकर, पढ़कर, गाकर, गुनगुना कर
फुसफुसाहट से वो तुम कह देना अब
जस का तस एक तुम
एक वो मोड़े हुए क़िस्सों में छिपी
कुछ अनगिनत कहानियाँ पर
तुम को मैंने जितना मोड़ दिया था
किसी रोज़ पलटकर खोलने के बाद
तुम्हारे उन्हीं क़िस्सों को
फिर से दोहराने के लिए
पर देखों न उन मोड़े गए
कुछ किस्सों को हम तो भूल गए
पर तुम्हें याद है जस की तस।
■ आत्ममंथन
मैं अभी
लिख नहीं रहा हूँ
कुछ पढ़ रहा हूँ
तुम को
कुछ पढ़ रहा हूँ
खुद को
कमियॉं बहुत है
तब्दीली में
तो कुछ बुन रहा हूँ
तुम को
तो कुछ बुन रहा हूँ
खुद को
सभ्य समाज की
उस सटीक परिभाषा में
खरे उतरे नहीं हो
तुम भी तो
मैं भी
उस खोज का
हिस्सा बना
हुआ हूँ
मैं अभी
लिख नहीं रहा हूँ
कुछ पढ़ रहा हूँ
तुम को
कुछ पढ़ रहा हूँ
खुद को।