स्मृति
भ्रमरों की स्मृति में है
फूलों का अकूत सौंदर्य
पहाड़ों का विशालकाय इतिहास है
नदियों की स्मृति में…
बीहड़ों की स्मृति में है
निर्जनता
नमक की स्मृति में
समुद्र की उदात्तता व्याप्त है…
अश्रुओं की स्मृति में होता है
दारुण दुखों का वास
उदासी की स्मृति में
उन्मादी एकाकीपन..
मैं भी नहीं हूँ अपनी
अपूर्णताओं से आश्वस्त…
केवल तुम बहते हो
मेरी स्मृतियों में…
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नायिका
मैं भली भांति परिचित हूँ
अपने सूक्ष्म अस्तित्व से,
मेरी तुलना ब्रह्मांड की मंदाकिनियों से न करें…
मेरी आयु में
उन अनुर्वर अंतरालों को न जोड़ें
जब मैं भाषा सीख रही थी…
मेरे चींंटी प्रयासों पर प्रश्नचिह्न न लगाएं
कर्मठता को ठेस पहुँचती है मेरी…
मैंने स्वयंमेव चुना है
निष्ठा का निस्संंग मार्ग
मदद का हाथ बढ़ाकर मुझे शर्मिन्दा न करें आप…
कृपया अनुचित नामों से न पुकारें मुझे
कुछ वर्जनाओं को सायास ठेल रही हूँ मैं
नर्क के द्वार तक…
देखिए एक मौका दें मुझे
बित्ते भर का भी संशय न पालें…
मुझे विश्वास है अपनी उर्ध्वमुखी चेतना पर
अपने जीवन की नायिका मैं खुद बनना चाहती हूँ…
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संगति
तुम्हें प्रेम का अखंड पाठ करते देखना
मुझे पवित्रता से भर देता है
और मैं परिष्कृत कर देती हूँ
अपने जीवन के सभी खटरागों को…
प्रेम की ऐसी संगीतमय बेला में
कब तक रह सकता है कोई विभक्त इकाई बन कर…
तो क्यों न ऐसा हो कि
मैं किसी वाद्ययंत्र की थाप बन
तुम्हारे सुरों को उत्कर्ष दूँ
क्यों न एक सुरसंगत बंदिश बन जाएं हम
एकाकार हो
करें अपने प्रेम को संरक्षित…
यूँ ही बजते रहें देर तक
मंद गति से
किसी विलंबित लय में…
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