किताब का नाम : बीज ने छू लिया आकाश (कविता संग्रह)कवयित्री : आशमा कौलपृष्ठ संख्या : 112, मूल्य : ₹ 150/-, प्रथम संस्करण : 2021प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, सी 46, सुदर्शन पूरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर, राजस्थान समीक्षक : नरेश शांडिल्य
उनके नवीनतम कविता संग्रह ‘बीज ने छू लिया आकाश’ में अलग-अलग विषयों पर उनकी 60 बेहतरीन कविताएँ संकलित हैं। इनमें अधिकांश कविताएँ प्रकृति और प्रेम पर केंद्रित हैं। आशमा कौल ने इस किताब के समर्पण पृष्ठ पर लिखा भी है, ” यह काव्य कृति मैं इस पावन, कोमल और निश्छल प्रकृति को समर्पित कर रही हूँ, जिसने मुझे हमेशा प्रेम करने के लिए प्रेरित किया है।”
112 पृष्ठों की किताब में फैली ये कविताएँ , दरअस्ल, दिल से दिल तक की यात्रा करती हैं। क्योंकि ये कोमल और अनूठे अहसासों की कविताएँ हैं। इनमें बेकार की वैचारिक बोझिलता नहीं है। इसका अर्थात् यही है कि इस संग्रह में भी आशमा कौल ने सरलता, सहजता और अनुभव को अपने साथ रखा है। इस मायने में आशमा कौल की कविताएँ औरों के प्रभाव से बची हुई हैं। ये बहुत बड़ी बात है। समकालीन कविता आलोचना की कसौटी पर भी आशमा कौल की अधिकतर कविताएँ खरी उतरती हैं। बल्कि अब आशमा कौल एक स्थापित नाम हो चुकी हैं। ‘बीज ने छू लिया आकाश’ का वैविध्य तो रेखांकित करने योग्य है।
आशमा कौल की प्रेम कविताओं में कई जगह ‘छायावादी’ टच भी आया है। प्रकृति का मानवीयकरण उन्होंने बख़ूबी किया है और बड़ी ही शालीनता और श्लीलता से वे अनूठे प्रकृति बिम्बों से प्रेम के उदात्त रूप को उकेरने में सफल हुई हैं। ‘क्षितिज’, ‘लता’, ‘फूल और भ्रमर’, ‘चाँद और धरा’, ‘अग्नि और मंत्र’ आदि उनकी बेहतरीन प्रेम कविताएँ हैं। उनकी ‘अग्नि और मंत्र’ कविता का यह अंश दृष्टव्य है-
“मैंने देखा है उसे / आग से प्यार करते / अपने प्रेम का इज़हार करते
हाँ, हवन में मैंने / मंत्र को घूमते देखा है / अग्नि की बीन पर
जब लपटें उठती हैं / चूमने मंत्रों के लब / मंत्र ख़ुशी में / झूम उठते हैं
शुद्ध कर देते हैं / अपने पवित्र प्रेम से / यह सात्विक पर्व ”
“कविता लफ़्ज़ों से / नहीं बनती / यह आत्मा का / गीत है”
“कविता सिर्फ़ कुछ की / सौग़ात नहीं / यह भावुक मन की / ज़ायदाद है”
“कविता नहीं मोहताज़ / इनामों की / यह मन की संतुष्टि / का संगीत है”
आशमा कौल की ‘माँ’ कविता बहुत ही अलग प्रभाव की है। इसमें माँ की उँगलियों को लेकर उन्होंने जो प्यारे-प्यारे बिम्ब प्रस्तुत किये हैं वे ग़ज़ब के हैं। इस बिम्ब-विधान को देखें –
‘बीज ने छू लिया आकाश’ के माध्यम से आशमा कौल ‘अहसासों की कवयित्री’ के रूप में हमारे सामने आई हैं। अहसासों को महसूसना और फिर उनकी कोमलता को शिद्दत से शब्दों में पिरोना वे बख़ूबी जानती हैं। बल्कि वे अनकहे अहसासों को भी व्यक्त करने की सामर्थ्य रखती हैं। इस मायने में वे अहसानफ़रामोश नहीं हैं। वे विनम्र भाव से लेकिन मुखर होकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना जानती हैं। ‘तुम क्या जानो’ कविता में उनकी कृतज्ञता यूँ व्यक्त हुई है-
“तुम क्या जानो / तुम ही मेरे / इस बिखरेपन को / समेटते हो / दिल के चाक पर / गीली मिट्टी की तरह / मुझे सहेज कर / एक ख़ूबसूरत रूप देते हो ”
आशमा कौल इस संग्रह के माध्यम से एक निराश, नाराज़, हताश या लाचार कवयित्री के रूप में सामने नहीं आतीं बल्कि वे अपनी निराशा, अपनी नाराज़गी, अपनी हताशा और अपनी लाचारी को ‘क्रिएटिव’ रूप देती हैं और अपने दर्द को दवा बनाती हुई दर्द को अपनी तरह से रचना जानती हैं। वे हालात का रोना नहीं रोतीं बल्कि यहीं से ही रास्ता खोजती हैं। उनकी एक ऐसी ही कविता है ‘औरत’; इसमें वे इस दौर की जागरूक औरत की जातिगत अस्मिता को आधुनिक बोध के साथ सामने रखती हैं। जिसमें वह औरत अपने अधूरे सपने को, अपनी बेटी के जीवन को सार्थकता के साथ पूरा करना चाहती है। इस कविता की सार्थकता और अर्थवत्ता देखते ही बनी है-
“क्या मेरे जीवन का / कोई अर्थ है? / या मैं सिर्फ़ / दूसरों के जीवन को /अर्थ दे रही हूँ / सुबह से रात तक / सुनती हूँ सब की फ़रमाइशें / क्या कभी / अपने मन की सुन पाई हूँ ? / ‘औरत’ का शायद यही अर्थ है / शायद ‘औरत’ की यही परिभाषा है!
क्या मैं इसका अर्थ / बदल नहीं सकती? / इसकी परिभाषा बदल नहीं सकती? / अपना जीवन / नहीं सँवार पाई तो क्या / अपनी बेटी का भविष्य / सँवार सकती हूँ / उसके जीने को मक़सद / और जीवन को अर्थ दे सकती हूँ”
औरत की पाकीज़गी और शक्ति का एहसास कराती उनकी एक कविता है- ‘औरत तुम गंगा हो’… इस कविता में औरत के जुझारू और पावन रूप के दर्शन एक साथ होते हैं। आशमा कौल का नारी विमर्श आयातित नहीं बल्कि भारतीय रूप से हमारे सामने आया है-
“जीवन के हर तट पर / दुख के पर्वतों को लाँघती / हर कठिनाई पर / तुम गर्जती हुई / बढ़ी जा रही हो / बिना विश्राम किए / जीवन के अग्निपथ पर / चली जा रही हो / ज्यों पवन के रथ पर /औरत तुम गंगा हो…”
आशमा कौल ने बहुत से विषयों को अपनी कविता का विषय बनाया है। वे बिल्कुल अलग तरह से, पूरी मौलिकता के साथ अपनी बात को रखती हैं। लगता है हर कविता को उन्होंने अपने अनुभव की कसौटी पर कसा है। उनकी शब्दावली और सहजता एक दूसरे के पूरक हैं और कविता के प्रभाव को बढ़ाते हैं।
सुंदर-साँझ, तितली, ख़बर, दिया, आँखें, साँस, बीज, इश्तिहार, भूख, नदी, जिस्म और बूॅंदें, किसान, महारास, पिता की अमानत, वादा, खोलकर मन के किवाड़, उम्र, मन का हिरण और चांद कविताओं में आशमा कौल के भाव-वैविध्य का हम अच्छे से दर्शन कर सकते हैं।
कुल मिलाकर कहें तो आशमा कौल अनुभव पगे अहसासों की कवयित्री हैं। प्रकृति और प्रेम की कवयित्री हैं। साधारण तरह से बात करने वाली अत्यंत असाधारण कवयित्री हैं। आशमा कौल की इस किताब को पढ़कर कोई भी व्यक्ति कविता की छुअन से रूबरू हो सकता है। बेहतरीन कविता संग्रह ‘बीज ने छू लिया आकाश’ के लिए आशमा कौल को तहेदिल से बधाई!