क्षणिकाएँ
1. आंखों में दिख जाएगा छुप नहीं सकते तुम खुद अपने आप से, निगाहें तो मिलाओ दर्पण में जनाब से! ...
1. आंखों में दिख जाएगा छुप नहीं सकते तुम खुद अपने आप से, निगाहें तो मिलाओ दर्पण में जनाब से! ...
बादलों को देखकर हमेशा ही अच्छा लगता है कभी रूई से लगते हैं कभी बूढ़े बाबा की दाढ़ी जैसे कभी ...
संस्कृति व्यक्ति और राष्ट्र को दृष्टि देती है। जीवन-शैली एवं जीवन-मूल्यों का निर्धारण करती है और विशिष्ट जीवन-दर्शन का निर्माण ...
यह एक सांस्कृतिक विडंबना ही मानी जाएगी कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व एक सामान्य हिंदी भाषी व्यक्ति का अपने साहित्य ...
"आपका चले जाना इस दुनिया के लिए होगा, लेखन संसार और मेरे लिए कतई भी नहीं!" 18 नवंबर, 2020 को ...
भारतेन्दु हरिशचंद्र पर बात करने के लिए मैं उनकी साहित्यिक अवस्थिति के राजनीतिक निहितार्थों से अपनी बात शुरू करना चाहूँगा। ...
तुम और तुम्हारी तस्वीर से अक्सर मैं बातें करती हूं तुम अगर होते तो कैसे लगते तुम साथ होते तो ...
एक दृष्टि ... मैं एक स्त्री अपने पूरे व्यक्तित्व और अस्तित्व के साथ अपने सपनों को पंख देते हुए सतरंगी ...
अजित कौर पंजाबी की जानी-मानी साहित्यकार हैं. अपनी आत्मकथा 'खानाबदोश' के लिए उन्हें वर्ष 1986 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला ...
(1) दरारें दीवार की दरारों के बीच झाँकता पीपल का पेड़ कुछ हम जैसा ही तो है न किसी ने ...
कुछ किताबें ऐसी होती हैं जिन्हें पढ़ने के बाद आप बेचैन हो जाते हैं और आपके मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव ...
वरिष्ठ साहित्यकार एवं गोवा की पूर्व राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा का 18 नवंबर 2020 को 77 साल की उम्र में ...
1. (मेरी कविताओं में आए बूढ़े कवि के लिए) प्रिय बूढ़े कवि जब तुम बूढ़े हो रहे थे तब मैं ...
सत्यमित्र दुबे* 1. पिछले दो तीन दशकों के हिंदी लेखन पर नजर दौड़ाने से यह बात स्पष्ट होती है कि ...
1. गीत जो लिखा रहे हैं मेरे ये हठीले नैन नैन चाहते ...
■ तितली जब उड़ी सूने हथेली पे रेगिस्तान ने विस्तार लिया। वीरानों ने पाओ पसारे। अंधड़ों ने रेखाओं को मनचाहा ...
कभी ख़ाक तो कभी धुआँ मिलता है यहाँ आदमी मुक़म्मल कहाँ मिलता है चारासाजों की बातों में बहुत पहले था, ...
1. पृथ्वी और तुम मुझे पृथ्वी से बहुत प्रेम है, मैं ने कभी नहीं चाहा कि पूरी की पूरी पृथ्वी ...
‘जब व्हेल पलायन करते हैं’—यूरी रित्ख्यू का रूस के चुकची प्रायद्वीप की दंतकथा पर आधारित अपने तरह का अनोखा, अप्रितम ...
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने भारत की राम रूपी आत्मा को आसेतु-हिमालय तक प्रकाशित किया. उन्होंने रामात्म का विन्यास करके निखिल ...
1. वे... तुम्हारी तरह फेमिनिस्ट नहीं थीं और न ही उन्होंने उगा रखा था माथे पर लाल बिंदी का सूरज ...
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