दो कविताएँ
पुरानी किताब आज एकाएक दिमाग में कौंध गई वही पुरानी किताब जिसे देखकर और पढ़कर चमक उठता था चेहरा शायद ...
पुरानी किताब आज एकाएक दिमाग में कौंध गई वही पुरानी किताब जिसे देखकर और पढ़कर चमक उठता था चेहरा शायद ...
औरतें अब चार औरतें एक साथ बैठ, नहीं करती हैं प्रपंच! वे हो गयी हैं कामकाजी! भाने लगे हैं उन्हें ...
1. खिलौने अनजाने में भी जब टूट जाते हैं बच्चों से वो रो पड़ते हैं— बिलख पड़ते हैं, वो बड़े ...
■ तुम तोड़ दो तुम तोड़ दो प्रेम में अभिभूत झूमते वृक्ष की सब टहनियां मैं भी रोक देती हूँ प्रेमिल ...
मॉरीशस यानी हिन्द महासागर का मोती। 720 वर्ग मील में फैला एक द्वीप, जो वर्तमान समय में लघु भारत कहा ...
सुनहरे कल की आंखों में सजाए ख्वाब को अपने, चले आए शहर में छोड़ कर परिवार को अपने। ये सोचा ...
(1) यह बहुत बार होगा यह बहुत बार होगा जो आप सोचते हैं वह जरूरी नहीं कि पूरा ही हो ...
एक पतली-दुबली, लंबी, आकर्षक से चेहरे वाली, मुस्कान से भरी लड़की ‘ऐमी’, मेरे दफ्तर के बहुत अच्छे पद पर नई-नई ...
रामलीला में राम का वेश धरे सुरेश्वर रावणसे लड़ तो रहा था, मगर,अपने अभिनय में जान नहीं फूँक पा रहा ...
(तुलसी के निजी जीवन के अनुभवों के आलोक में उनके साहित्यिक जीवन की पड़ताल) तुलसी की पत्नी से नहीं बनी। ...
1. रेत के तपते शहर में ख़्वाब झुलस जाते हैं रोशनी के थपेड़ों में, रात सिसकती रही। 2. तहस नहस ...
■ मैं जीना चाहती थी तुम्हें मैं जीना चाहती थी तुम्हें मैं तुम्हारे उघड़े सीने की भीत पर लिखना चाहती ...
गाँव शहर की बासी हवाओं में घिरकर तरस जाता हूँ लौट जाने को उस अबोध गाँव में जिसने, प्रकृति की ...
भेड़ भेड़ों में नहीं होता सही नेतृत्व चुनने का शऊर और चुने हुए ग़लत नेतृत्व को उखाड़ फेंकने का साहस ...
स्मृति भ्रमरों की स्मृति में है फूलों का अकूत सौंदर्य पहाड़ों का विशालकाय इतिहास है नदियों की स्मृति में... ...
राहुल राजेश हिंदी के चर्चित कवि हैं। अधिकांशत: ये छोटी कविताएँ लिखते हैं। कम शब्दों में अधिक बात कहने की ...
मैं चाहती हूँ किसी डूबते हुए को बचाने की कोशिश में मेरी देह मरे, आत्मा जीवित रहे और किसी मदद ...
आधुनिक देह में दकियानूसी दिल की तरह, पाॅश काॅलोनी के भव्य प्रवेश-द्वार पर सबसे ऊपर एक काला नज़रबट्टू टँगा है। ...
इस कशमकश में कि क्या लिखूं, क्या छोड़ूं? क्या बुनूं क्या तोड़ूं? मष्तिष्क एक कैद पंछी-सा तड़फड़ाता रहा अंधेरी ...
सन् 1893 में एनी बेसेंट ने थियोसाफिकल सोसाइटी का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। उन्होंने सन् 1898 में काशी में ...
कभी तो जरूर आना... जैसे पलाश के फूल आते हैं बसन्त आने पर जैसे गुलमोहर खिलता है पतझड़ जाने पर ...
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