
“हम नौ साल में बिहा गये थे बेटा. तुम्हारे दादाजी का तब सतरहवाँ साल शुरू हुआ था. हमारी छटपटाहट, हमारा…
1 comment
ऐसा क्यूं होता है! जब भी मन उदास होता है तुम कहीं आस-पास होते हो कभी तन्हाइयों में तुम्हारी मौजूदगी…
add comment
तेतर दास को मैं बचपन से ही देख रहा था. कभी नदी किनारे की गाछी (बाग) में आम तोड़ते हुए…
add comment
(1) जानकी वो जो करुणानिधान कहलाते हैं… अन्तस में जिन्हें… शिव पाते हैं…! जिनके चरणों की महिमा को… वेद पुराण…
4 comments
सर्दियों की धूप चाय के प्याले में गुनगुनी धूप बचपन का आंगन। महीन धागों सी उठती भाप की लकीरें उड़ाती…
1 comment
1) खालीपन के बिल में स्त्री नहीं भरती खालीपन को मित्र नहीं भरते दुनिया में चलतीं इतनी साँसें एक खाली…
add comment
गंगा की कल-कल धारा कहती तू रूक जा रे मैं कहती गंगा तू बहती जा रे। तट है, तेरा बड़ा…
4 comments
पहचान पशु पक्षी अपनी बोली बोलते हैं प्रेम करते हैं प्रकृति से नदियों के बहते जल में अठखेलियाँ करते हैं…
1 comment
भारतीय मनीषा अपने सांगोपांग समुच्चय के साथ कुबेरनाथ राय की रचनाओं में प्रतिफलित हुई है। उनके लिखे का पारायण भी…
add comment
१) रंग सारे उड़ गये शायद हवा में जिंदगी फिर श्वेत श्यामल हो गई है राह अब कैसे मिले घनघोर…
add comment
खेलती है बारिश खेलती है बारिश पहाड़ों, पेड़ों, नदी, नहरों के साथ खेलती है बारिश सड़कों, घरों, दरों-दीवारों के साथ…
2 comments
नरेश सक्सेना जैसी जिजीविषा और कविता तो सब को मिले पर उन के जैसा दुःख और यह कथा किसी भी…
add comment
(मंगलेश डबराल के लिए…) १. धरती के कवि का जाना कुछ यूं है जैसे भाषा में छा गई…
1 comment
धूप का कतरा रेशा रेशा पिघलती हूं मैं तेरे नशे में, मानो एक कतरा धूप का मिला, बरसों के अंधेरे…
34 comments
वाल्मी पहाड़ी पर पहुँचकर अनीता ने अपनी बकरी चरने छोड़ दी और ख़ुद पत्थरों के टीले पर एक बड़े पत्थर…
3 comments
1) सिंड्रेला खो चुका है चमचमाता जूता, टूट चुका है अर्द्धरात्रि का जगमगाता दिवा स्वप्न, इच्छाओं की लड़ियाँ टूटी बिखरी…
3 comments
■ सैनिक का खत सीमा की निगरानी में हूँ मैं थका नहीं तुम सुनो अभी मैं राग अलापा करता हूँ…
3 comments
(1) तेरी महफ़िल में गर ठहर जाते हम तिरी बेरुख़ी से मर जाते तेरा हर ज़ुल्म सह लिया हँसकर छोड़…
1 comment
दोहा प्राचीनतम एवं लोकप्रिय काव्य विधा है. भारतीय कवियों और संतों ने इस शैली में लिखकर ज्ञान-आलोक फैलाया. एक दोहाकार…
4 comments
1. आंखों में दिख जाएगा छुप नहीं सकते तुम खुद अपने आप से, निगाहें तो मिलाओ दर्पण में जनाब से!…
add comment
बादलों को देखकर हमेशा ही अच्छा लगता है कभी रूई से लगते हैं कभी बूढ़े बाबा की दाढ़ी जैसे कभी…
add comment