(1) दरारें दीवार की दरारों के बीच झाँकता पीपल का पेड़ कुछ हम जैसा ही तो है न किसी ने...
Read more1. (मेरी कविताओं में आए बूढ़े कवि के लिए) प्रिय बूढ़े कवि जब तुम बूढ़े हो रहे थे तब मैं...
Read more1. गीत जो लिखा रहे हैं मेरे ये हठीले नैन नैन चाहते...
Read more■ तितली जब उड़ी सूने हथेली पे रेगिस्तान ने विस्तार लिया। वीरानों ने पाओ पसारे। अंधड़ों ने रेखाओं को मनचाहा...
Read moreकभी ख़ाक तो कभी धुआँ मिलता है यहाँ आदमी मुक़म्मल कहाँ मिलता है चारासाजों की बातों में बहुत पहले था,...
Read more1. पृथ्वी और तुम मुझे पृथ्वी से बहुत प्रेम है, मैं ने कभी नहीं चाहा कि पूरी की पूरी पृथ्वी...
Read more1. वे... तुम्हारी तरह फेमिनिस्ट नहीं थीं और न ही उन्होंने उगा रखा था माथे पर लाल बिंदी का सूरज...
Read moreपुरानी किताब आज एकाएक दिमाग में कौंध गई वही पुरानी किताब जिसे देखकर और पढ़कर चमक उठता था चेहरा शायद...
Read moreऔरतें अब चार औरतें एक साथ बैठ, नहीं करती हैं प्रपंच! वे हो गयी हैं कामकाजी! भाने लगे हैं उन्हें...
Read more1. खिलौने अनजाने में भी जब टूट जाते हैं बच्चों से वो रो पड़ते हैं— बिलख पड़ते हैं, वो बड़े...
Read more■ तुम तोड़ दो तुम तोड़ दो प्रेम में अभिभूत झूमते वृक्ष की सब टहनियां मैं भी रोक देती हूँ प्रेमिल...
Read moreसुनहरे कल की आंखों में सजाए ख्वाब को अपने, चले आए शहर में छोड़ कर परिवार को अपने। ये सोचा...
Read more(1) यह बहुत बार होगा यह बहुत बार होगा जो आप सोचते हैं वह जरूरी नहीं कि पूरा ही हो...
Read more1. रेत के तपते शहर में ख़्वाब झुलस जाते हैं रोशनी के थपेड़ों में, रात सिसकती रही। 2. तहस नहस...
Read more■ मैं जीना चाहती थी तुम्हें मैं जीना चाहती थी तुम्हें मैं तुम्हारे उघड़े सीने की भीत पर लिखना चाहती...
Read moreगाँव शहर की बासी हवाओं में घिरकर तरस जाता हूँ लौट जाने को उस अबोध गाँव में जिसने, प्रकृति की...
Read moreभेड़ भेड़ों में नहीं होता सही नेतृत्व चुनने का शऊर और चुने हुए ग़लत नेतृत्व को उखाड़ फेंकने का साहस...
Read moreस्मृति भ्रमरों की स्मृति में है फूलों का अकूत सौंदर्य पहाड़ों का विशालकाय इतिहास है नदियों की स्मृति में... ...
Read moreराहुल राजेश हिंदी के चर्चित कवि हैं। अधिकांशत: ये छोटी कविताएँ लिखते हैं। कम शब्दों में अधिक बात कहने की...
Read moreमैं चाहती हूँ किसी डूबते हुए को बचाने की कोशिश में मेरी देह मरे, आत्मा जीवित रहे और किसी मदद...
Read moreइस कशमकश में कि क्या लिखूं, क्या छोड़ूं? क्या बुनूं क्या तोड़ूं? मष्तिष्क एक कैद पंछी-सा तड़फड़ाता रहा अंधेरी...
Read more© 2024 साहित्यिकी.